ख़ुश्की पे रहूँगी कभी पानी में रहूँगी ता उम्र इसी नक़्ल-ए-मकानी में रहूँगी मैं जिस्म नहीं हुस्न हूँ ऐ चश्म-ए-अबद-ताब मर कर भी मोहब्बत की कहानी में रहूँगी ताबिंदा रहेंगे मिरी आँखों के किनारे अश्कों में ढली हूँ कि रवानी में रहूँगी अज्दाद की क़ुर्बत से उठाया गया मुझ को गोया मैं बुज़ुर्गों की निशानी में रहूँगी शेरों ही पे मौक़ूफ़ नहीं मेरी हक़ीक़त अल्फ़ाज़ से भागूँगी मआ'नी में रहूँगी ऐ शाएर-ए-दिल-सोज़ मिरे दुख को बयाँ कर ता हश्र तिरी शो'ला-बयानी में रहूँगी अब गुड़िया पटोलों से इलाक़ा नहीं 'माहीन' बचपन से निकल आई जवानी में रहूँगी