ख़ुश-नज़र कह के टाल दे मुझ को या फिर अपनी मिसाल दे मुझ को ख़ुश-बयानी का शुक्रिया लेकिन जुरअत-ए-अर्ज़-ए-हाल दे मुझ को तू भी हो जाए हम-ख़याल मिरा कोई ऐसा ख़याल दे मुझ को अहद-ए-हाज़िर तो नक़्श-ए-माज़ी है अब नए माह-ओ-साल दे मुझ को नज़र आती नहीं है राह-ए-फ़रार दाएरे से निकाल दे मुझ को तू है क्या ख़ुद को जानता हूँ मैं कोई ऊँचा सवाल दे मुझ को