मैं हूँ तिरा ख़याल है और चाँद-रात है दिल दर्द से निढाल है और चाँद-रात है आँखों में चुभ गईं तिरी यादों की किर्चियाँ काँधों पे ग़म की शाल है और चाँद-रात है दिल तोड़ के ख़मोश नज़ारों का क्या मिला शबनम का ये सवाल है और चाँद-रात है फिर तितलियाँ सी उड़ने लगीं दश्त-ए-ख़्वाब में फिर ख़्वाहिश-ए-विसाल है और चाँद-रात है कैम्पस की नहर पर है तिरा हाथ हाथ में मौसम भी ला-ज़वाल है और चाँद-रात है हर इक कली ने ओढ़ लिया मातमी लिबास हर फूल पर मलाल है और चाँद-रात है मेरी तो पोर पोर में ख़ुश्बू सी बस गई उस पर तिरा ख़याल है और चाँद-रात है छलका सा पड़ रहा है 'वसी' वहशतों का रंग हर चीज़ पे ज़वाल है और चाँद-रात है