ख़्वाब अपने मिरी आँखों के हवाले कर के तू कहाँ है मुझे नींदों के हवाले कर के मेरा आँगन तो ब-जुज़ तेरे महकता ही नहीं! बारहा देखा है फूलों के हवाले कर के एक गुमनाम जज़ीरे में उतर जाऊँगा अपनी कश्ती कभी लहरों के हवाले कर के कैसा सूरज था कि फिर लौट के आया ही नहीं चाँद तारे मिरी रातों के हवाले कर के मुझ को मालूम था इक रोज़ चला जाएगा! वो मिरी उम्र को यादों के हवाले कर के घर की वीरानी बदल डाली है रौनक़ में 'हसन' सहन का पेड़ परिंदों के हवाले कर के