ख़्वाब देखूँ कोई महताब लब-ए-बाम उतरे यूँ भी हो जाए मुराद-ए-दिल-ए-नाकाम उतरे अगले वक़्तों की बशारत से हो दुनिया रौशन आसमानों से ज़मीं पर तिरा इनआ'म उतरे याद आए तो खिलें फूल चले पुर्वाई दर्द जागे तो तिरा अक्स तह-ए-जाम उतरे मैं चराग़ों से हमेशा तिरी बीती पूछूँ बिन बताए तू मिरे घर में सर-ए-शाम उतरे मैं दुआ माँगूँ किसी नेक घड़ी में 'सहबा' उस का दुख मेरा मुक़द्दर हो मिरे नाम उतरे