ख़्वाब जैसी ही कोई अपनी कहानी होती यूँ तो बर्बाद न ये अपनी जवानी होती तेरे आने से चहक उठता ये वीराना-ए-दिल फिर से आबाद वही रविश पुरानी होती राब्ता रखा न दिया जा-ए-सुकूनत का पता इस तरह भी है कोई नक़्ल-ए-मकानी होती अब मिरे पास नहीं कोई भी रोने का जवाज़ हिज्र मौसम की सही अश्क फ़िशानी होती याद करने का तुझे कोई बहाना भी नहीं कोई छल्ला कोई चौड़ी ही निशानी होती अब तिरे हिज्र से मानूस तबीअत है मिरी पहले वाली सी नहीं जाँ पे गिरानी होती नख़्ल-ए-जाँ पे जो बरसता तेरा बादल 'मरियम' कुछ तो कम बदन की ये तिश्ना-दहानी होती