किस क़दर ख़ुश-नसीब होते हैं जो शरीफ़-ओ-नजीब होते हैं क्या नहीं होते क़ाबिल-ए-इज़्ज़त दहर में जो ग़रीब होते हैं बे-ख़िरद दोस्तों से तो बेहतर हाँ रक़ीब-ए-लबीब होते हैं दर पे अब साइलों की दस्तक से सद परेशाँ मुजीब होते हैं जान लेते हैं जो मरीज़ों की क्या वो क़ातिल तबीब होते हैं क्यों मोहब्बत की राह में ही सदा ग़म ही पैहम नसीब होते हैं लोग बस उन को तकते रहते हैं ज़ाहिरन जो शबीब होते हैं सरफ़राज़ी उन्हीं को मिलती है वो जो अहल-ए-शकीब होते हैं दूर रह कर भी ज़ाहिरन कुछ लोग दिल के बेहद क़रीब होते हैं गुल्सितान-ए-अदब में ऐ 'नूरी' नग़्मा-ख़्वाँ बस अदीब होते हैं