ख़्वाब के रंग दिल-ओ-जाँ में सजाए भी गए फिर वही रंग ब-सद तौर जलाए भी गए उन्हीं शहरों को शिताबी से लपेटा भी गया जो अजब शौक़-ए-फ़राख़ी से बिछाए भी गए बज़्म शोख़ी का किसी की कहें क्या हाल-ए-जहाँ दिल जलाए भी गए और बुझाए भी गए पुश्त मिट्टी से लगी जिस में हमारी लोगो उसी दंगल में हमें दाव सिखाए भी गए याद-ए-अय्याम कि इक महफ़िल-ए-जाँ थी कि जहाँ हाथ खींचे भी गए और मिलाए भी गए हम कि जिस शहर में थे सोग-नशीन-ए-अहवाल रोज़ इस शहर में हम धूम मचाए भी गए याद मत रखियो ये रूदाद हमारी हरगिज़ हम थे वो ताज-महल 'जौन' जो ढाए भी गए