ख़्वाब क्या था जो मिरे सर में रहा रात भर इक शोर सा घर में रहा इक किरन मेहराब से लिपटी रही एक साया अध-खुले दर में रहा टूटती बनती रहीं परछाइयाँ ख़्वाहिशों का अक्स पैकर में रहा मैं सर-ए-ताक़-ए-सदा जल-बुझ गया तू वो शोअ'ला था कि पत्थर में रहा पानियों में मिशअलें बहती रहीं आसमाँ ठहरा समुंदर में रहा आइना-दर-आइना शमएँ बुझीं देखना अपने मुक़द्दर में रहा