मिज़ाज अपने कहाँ आज हैं ठिकाने पर हुज़ूर आए हैं मेरे ग़रीब-ख़ाने पर पिघल रही है मुसलसल जो बर्फ़ आँखों से अजीब धूप है पलकों के शामियाने पर न जाने आ गए क्यूँ उस की आँख में आँसू जो हँस रहा था मिरे दर्द के फ़साने पर ज़रा सी सम्त बदल ली जो अपनी मर्ज़ी से तो नाव आ गई तूफ़ान के निशाने पर ख़ुदा बचा के रखे 'मीना' उस घड़ी से हमें कि बात ठहरे कभी उस के आज़माने पर