ख़्वाब पहले ले गया फिर रत-जगा भी ले गया जाते जाते वो मिरे घर का दिया भी ले गया धूप है अब और न बादल है न ख़ुशबू और न फूल सारे मौसम ले गया आब-ओ-हवा भी ले गया ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी तय हो मसाफ़त किस तरह सम्त-ए-मंज़िल ले गया वो रास्ता भी ले गया एक मुद्दत हो गई बैठा हूँ संग-ए-मील पर रास्तों के साथ अपने नक़्श-ए-पा भी ले गया हाथ पत्थर हो गए लब कपकपाते रह गए वो दुआ भी ले गया दस्त-ए-दुआ भी ले गया कैसे देखूँगा मैं 'ज़ुल्फ़ी' अपने चेहरे की किताब वो गया तो आरज़ू का आइना भी ले गया