ख़्वाब था या कि जुनूँ ख़ूब था बेकल मुझ में बरपा रखता था हर इक हाल में हलचल मुझ में ये जो आँखों से छलकती है हमा-वक़्त मिरे रख गया अपनी निशानी कोई छागल मुझ में ये बताते हैं मुझे होंटों के शिकवे मेरे आज भी रहती है लड़की कोई पागल मुझ में मुझ को रोने ही नहीं देते इरादे मेरे क्या करूँ दिल जो धड़कता है ये कोमल मुझ में मैं तो ख़ामोश हूँ इक उम्र से लेकिन हाए शोर करता है बहुत दर्द का बादल मुझ में मैं लिए फिरती हूँ होंटों पे गुलिस्तान-ए-अदब इस के बर-अक्स है आबाद ये जंगल मुझ में रंज-ओ-ग़म इस लिए इस दिल के मकीं हैं 'फ़हमी' विर्द होता है किसी हिज्र का पल पल मुझ में