ख़्वाब-ओ-ख़याल हो गए याराने किस तरह पल-भर में लोग बन गए अनजाने किस तरह क्यूँ कर ख़ुलूस-ओ-शौक़ में बदलेंगी नफ़रतें ये फ़ासले मिटेंगे ख़ुदा-जाने किस तरह बोलो ज़बाँ से तुम न कोई गुफ़्तुगू करो दिल का तुम्हारे हाल कोई जाने किस तरह मैं किया कि एक चेहरा हूँ जम्म-ए-ग़फ़ीर में वो मुझ को इस हुजूम में पहचाने किस तरह मजनूँ तो एक नाम था गर्द-ओ-ग़ुबार का दिल में बसा लिया उसे लैला ने किस तरह ख़ुद अपने ही वजूद से वहशत-ज़दा हैं लोग आबादियों में आ गए वीराने किस तरह इक़बाल तुम ने जो भी कहा सच कहा मगर सच बात भी तुम्हारी कोई माने किस तरह