ख़्वाबों के साथ ज़ेहन की अंगड़ाइयाँ भी हैं इक रौशनी भी है कई परछाइयाँ भी हैं ये काएनात ख़ुद भी है इक पैकर-ए-जमील और कुछ तिरे जमाल की रानाइयाँ भी हैं डूबा हुआ हूँ क़ुल्ज़ुम-ए-आलाम में मगर ज़ेर-ए-क़दम हयात की परछाइयाँ भी हैं जादू जगाती रात के सायों के आस-पास लर्ज़ां तुम्हारी याद की पहनाईयाँ भी हैं आता नहीं शबाब यूँही काएनात पर मसरूफ़ कार-ए-इश्क़ की बरनाइयाँ भी हैं शाम-ए-बला न मुझ से चुरा इस तरह निगाह तन्हा नहीं हूँ मैं मिरी तन्हाइयाँ भी हैं हैं तेरी अंजुमन में हमें इक फ़सुर्दा-दिल लेकिन हमीं से अंजुमन-आराइयाँ भी हैं 'हुर्मत' फ़क़त बुलंदी-ए-एहसास ही नहीं मेरी तलब में रूह की गहराइयाँ भी हैं