मौज-दर-मौज हवाओं से बचा लाऊँगा ख़ुद को मैं दश्त के पंजों से छुड़ा लाऊँगा हौसला रखिए मैं सहरा से पलट आऊँगा ज़र्रे ज़र्रे से मोहब्बत का पता लाऊँगा मेरे हाथों की लकीरों में जो हैं उलझे हुए उन ही गेसू के लिए फूल बचा लाऊँगा तेरे माथे पे चमकते हुए रंगों की क़सम तिरे होंटों पे तरन्नुम की सदा लाऊँगा मैं जो पाबंद-ए-वफ़ा हूँ तू वफ़ा ज़िंदा है मैं इसी तर्ज़-ए-रियाज़त का सिला लाऊँगा मौसम-ए-ख़ुश्क हुआ तेज़ मगर वा'दा रहा सुर्ख़ फूलों के लिए नाम-ए-वफ़ा लाऊँगा शब की तन्हाई में आँखों से लहू टपकेगा ऐसे 'आलम' की मैं तस्वीर बना लाऊँगा