ख़्वाह महसूर ही कर दें दर-ओ-दीवार मुझे घर को बनने नहीं देना कभी बाज़ार मुझे मैं इसे दस्त-ए-अदू में नहीं जाने दूँगा सर की क़ीमत पे भी महँगी नहीं दस्तार मुझे मैं जो चलता हूँ तो आँखें भी खुली रखता हूँ इतना सादा भी न समझें मिरे सालार मुझे फिर तवाज़ुन में रहेगी मिरी नाव कब तक जब डुबोने पे तुले हैं मिरे पतवार मुझे या ज़माना मिरी तक़लीद में आ निकलेगा या कहीं का न रखेंगे मिरे मेयार मुझे अब मिरा हिज्र मुझे साथ लिए फिरता है जाइए अब कोई साथी नहीं दरकार मुझे इस तरह सोचते रहना नहीं अच्छा 'शहज़ाद' फ़िक्र-ए-सेहहत ही न कर दे कहीं बीमार मुझे