ख़्वाह मुफ़्लिसी से निकल गया या तवंगरी से निकल गया वही वक़्त अस्ल-ए-हयात था जो हँसी-ख़ुशी से निकल गया उसे भूल जाऊँ ये कह के मैं वो मिरा नहीं था नहीं नहीं मुझे दे के जो नई ज़िंदगी मिरी ज़िंदगी से निकल गया किसे अपना कह के पुकारिए किसे दिल के घर में उतारिए वो जो प्यार नाम का वस्फ़ था ख़ू-ए-आदमी से निकल गया जो लगे समेटने माल धन तो समेटते ही चले गए यहीं छोड़ जाएँगे सब का सब ये दिमाग़ ही से निकल गया कहीं बाहर अपने वजूद के न है जोत कोई न नूर है जिसे अपने दिल में ज़िया मिली वही तीरगी से निकल गया सभी इक मक़ाम पे जा मिले हाँ बस एक फ़र्क़ ज़रूर था कोई इस गली से निकल गया कोई उस गली से निकल गया यहाँ जिस किसी ने भी सच कहा उसे मौत तक की मिली सज़ा ये तो 'शाद' तेरा नसीब था तो भली-बुरी से निकल गया