जफ़ा-शिआ'र भी हो कोई मेहरबाँ भी रहे किसी के लब पे दुआएँ भी हों फ़ुग़ाँ भी रहे तिरी ये दुश्मन-ए-जाँ को दुआ जबीन-ए-नियाज़ कि तू रहे ये तेरा संग-ए-आस्ताँ भी रहे हुज़ूर उन के कहें हर्फ़-ए-मुद्दआ तो मगर ये दिल भी पहलू में हो मुँह में ये ज़बाँ भी रहे इधर तबाही-ओ-ग़ारतगरी उधर ता'मीर गिरी है बर्क़ भी आबाद आशियाँ भी रहे पुकारा मौत को तंग आ के ज़िंदगी से कभी तू महव-ए-जुस्तुजू-ए-उम्र-ए-जावेदाँ भी रहे ग़म-ए-मआ'श वतन में यहाँ ग़म-ए-ग़ुर्बत ख़राब हाल वहाँ भी रहे यहाँ भी रहे रह-ए-वफ़ा में मिटा दे वो अपनी हस्ती को जो चाहता है मिरा हश्र तक निशाँ भी रहे