ख़्वाहिश-ए-वस्ल को क़लील न कर शब-ए-हिज्राँ को अब तवील न कर मैं ने तुझ को रखा सर-आँखों पर ज़िंदगी तू मुझे ज़लील न कर जिस का जी चाहे पी ले जी भर के इतनी सस्ती कभी सबील न कर अपने नाम-ओ-निशाँ मिटाता चल नक़्श-ए-पा को तू संग-ए-मील न कर नींद की वादियों में रात गुज़ार अरसा-ए-ख़्वाब को क़लील न कर तेरा मुहताज उम्र भर मैं रहूँ ऐ ख़ुदा मुझ को ख़ुद-कफ़ील न कर रात की आँख बंद होने लगी दास्ताँ को बहुत तवील न कर मैं ने तो अश्क पी लिया 'नूरी' अपनी आँखों को तू भी झील न कर