ख़्वाहिशों से बर-सर-ए-पैकार हो जाना पड़ा ख़ुद ही दिल की राह में दीवार हो जाना पड़ा उन से पूछो रिज़्क़ की मजबूरियाँ क्या चीज़ हैं सुब्ह होते ही जिन्हें बेदार हो जाना पड़ा नम उठाए फिर रहे थे अपनी आँखों में सभी आइने को एक दिन ज़ंगार हो जाना पड़ा इस्म पढ़ना था कि साए चीख़ने पर आ गए सब के सब सायों को फिर अश्जार हो जाना पड़ा काट भी रखना पड़ी लहजे में आहन धार की मख़मलीं लफ़्ज़ों को जब तलवार हो जाना पड़ा मैं ने सब अहबाब को ख़ुश रक्खा जितना हो सका यूँ 'फ़िदा' हर दिन मुझे मिस्मार हो जाना पड़ा