ख़याल और फ़िक्र को बुलंदी नज़र को बालीदगी मिलेगी क़दम तू दुनिया-ए-इश्क में रख तुझे नई ज़िंदगी मिलेगी जुनूँ को अपने ख़िरद बना कर जो ज़िंदगी को सँवार लेगा यहाँ उसी साहिब-ए-जुनूँ को ख़िरद की पैग़म्बरी मिलेगी ये चार दिन की मसर्रतों का फ़रेब भी कितना देर-पा है उमीद है लम्हा लम्हा दिल को हलावत-ए-ज़िंदगी मिलेगी किसे गुमाँ था कि दौर ऐसा भी हम पे गुज़रेगा ज़िंदगी में न इशरत-ए-ख़्वाजगी मिलेगी न लज़्ज़त-ए-बंदगी मिलेगी रहे हैं मुद्दत से हम-सफ़र हम है फिर भी बेगानगी का आलम किसे ख़बर थी कि हर तमन्ना ब-सूरत-ए-अजनबी मिलेगी जदीद तहज़ीब की रविश पर जवाँ रहे गामज़न तू इक दिन हवस के हल्क़े में नीम-उर्यां बहीमियत नाचती मिलेगी बदलते हालात की नुमाइश हमें ये पैग़ाम दे रही है इन्ही अँधेरों से बज़्म-ए-गीती को एक दिन रौशनी मिलेगी ये दुनिया 'नग़मी' है आती जाती नहीं है ये उम्र-ए-जावेदानी सजेगी जब भी तुम्हारी महफ़िल हमारी उस में कमी मिलेगी