ख़याल-ए-नावक-ए-मिज़्गाँ में बस हम सर पटकते हैं हमारे दिल में मुद्दत से ये ख़ार-ए-ग़म खटकते हैं रुख़-ए-रौशन पे उस की गेसू-ए-शब-गूँ लटकते हैं क़यामत है मुसाफ़िर रास्ता दिन को भटकते हैं फ़ुग़ाँ करती है बुलबुल याद में गर गुल के ऐ गुलचीं सदा इक आह की आती है जब ग़ुंचे चटकते हैं रिहा करता नहीं सय्याद हम को मौसम-ए-गुल में क़फ़स में दम जो घबराता है सर दे दे पटकते हैं उड़ा दूँगा 'रसा' मैं धज्जियाँ दामान-ए-सहरा की अबस ख़ार-ए-बयाबाँ मेरे दामन से अटकते हैं