ख़याल-ए-यार सदा चश्म-ए-नम के साथ रहा मिरा जो चाह में दम था वो दम के साथ रहा गया सहर वो परी-रू जिधर जिधर यारो मैं उस के साया-सिफ़त हर क़दम के साथ रहा फिरा जो भागता मुझ से वो शोख़ आहू-चश्म तो मैं भी थक न रहा गो वो रम के साथ रहा अकेला उस को न छोड़ा जो घर से निकला वो हर इक बहाने से मैं उस सनम के साथ रहा 'नज़ीर' पीर हुआ तो भी बार-ए-नाज़-ए-बुताँ कुछ उस के दोश के कुछ पुश्त-ए-ख़म के साथ रहा