ख़याल-ओ-ख़्वाब की दुनिया कहाँ है तिरी आँखें तिरा चेहरा कहाँ है हम अपने शौक़ में डूबे हुए हैं हमारे शहर में दरिया कहाँ है तो सारी जुस्तुजू ही राएगाँ थी वो इक लम्हा रिफ़ाक़त का कहाँ है हर इक तारे से जा कर पूछता हूँ ये सूरज रात को जाता कहाँ है ये कैसा शोर है दीवार-ओ-दर का हमारे घर में वो रहता कहाँ है अभी रुस्वाइयाँ तो और होंगी अभी हम ने उसे सोचा कहाँ है अगर हम रेत की दीवार थे तो हमारे जिस्म का मलबा कहाँ है तलब के रास्ते पर आ गया हूँ बताओ अब मुझे जाना कहाँ है मुहल्ले-दार सब आराम से हैं मिरे हम-साए का कुत्ता कहाँ है ये हम जो 'क़ैस' हैं बस नाम के हैं हमारे सर में वो सौदा कहाँ है