ख़याल-ओ-ख़्वाब में दुनिया सदा बसाई गई इसी लिए तो हक़ीक़त से आश्नाई गई तुम्हारी वजह से मिलता था हर किसी से मैं रहे न तुम तो सभी से वो आश्नाई गई तवील रात लगे अब न दिन लगे छोटा पुराने लोग गए दास्ताँ-सराई गई मिरे बदन की हदों तक किया मुझे महदूद ये किस हिसाब से मुझ को सज़ा सुनाई गई तुम्हारे हिज्र में ये हाल हो गया मेरा तमाम रात ही आँखों में नींद आई गई मोहब्बतों का सिला बस यही मिला 'साबिर' हुई जहान में रुस्वाई पारसाई गई