खेल जाते हैं जान पर आशिक़ जान देते हैं आन पर आशिक़ कोई इन गालियों से टलते हैं हम हैं तेरी ज़बान पर आशिक़ ख़्वारी उन आशिक़ों की वे जो हुए तुझ से ना-क़द्रदान पर आशिक़ ताज़ा आफ़त तो एक ये है कि हम हुए उस नौ-जवान पर आशिक़ जान देने को सूद जानते हैं हम हैं अपने ज़ियान पर आशिक़ इस क़दर गिरती है कहे तो ये बर्क़ है मिरे आशियान पर आशिक़ 'मुसहफ़ी' गर तू मर्द-ए-कामिल है दिल न रख इस जहान पर आशिक़