खेल मौजों का ख़तरनाक सही क्या मैं इस खेल से डर जाऊँगा फिर कोई लहर पुकारेगी फिर मैं दरिया में उतर जाऊँगा ख़ूबसूरत हैं ये आँखें लेकिन क्या मैं आँखों में ठहर जाऊँगा ख़्वाब की तरह से देखा है तुम्हें ख़्वाब की तरह बिखर जाऊँगा शक्ल बन जाऊँगा बादल में कभी पुर्वा में उभर जाऊँगा मैं किसी याद का झोंका बन कर तेरे आँगन से गुज़र जाऊँगा ये मोहब्बत मुझे ताक़त देगी हौसला देगी ये हिम्मत देगी रौशनी तेरी नज़र से ले कर हर अँधेरे से गुज़र जाऊँगा कोई मक़्सद न कोई मुस्तक़बिल कोई साथी न है कोई मंज़िल तुम को जाना है जहाँ तुम जाओ क्या बताऊँ मैं किधर जाऊँगा क्यूँ नहीं मुझ को भी प्यारा है वतन है मगर सारी ज़मीं अपना चमन किसी आँगन में खिला हूँ 'वाकिफ' किसी धरती पे बिखर जाऊँगा