ख़िदमत नहीं करता ये मोहब्बत नहीं करता दिल मेरा ये बरसों से इबादत नहीं करता क्यों रौज़न-ए-दीवार से दीदार करूँ मैं चिलमन नहीं उठती तो ज़ियारत नहीं करता क्या उस को भला बनने सँवरने की ज़रूरत क्या ऐसे ही बरपा वो क़यामत नहीं करता ये तेरी मोहब्बत से हुआ है कि मिरा दिल ऐ दोस्त किसी से भी अदावत नहीं करता क्यों दिल पे है 'ज़रयाब' दिमाग़ अपना मुसल्लत ख़ादिम कभी मालिक पे हुकूमत नहीं करता