खींच लाएगी कोई मिस्रा-ए-तर आख़िर-ए-कार ज़ुल्फ़ ज़ंजीर से नाज़ुक है मगर आख़िर-ए-कार हर दोराहे पे कोई यार बिछड़ जाना है कौन अदा करता है तावान-ए-सफ़र आख़िर-ए-कार कौन ख़ुर्शीद को पल्टाए कि जंगल से इधर मोरनी झाड़ गई झील में पर आख़िर-ए-कार उड़ के दीवार-ए-शफ़क़ से ये परिंद-ए-महताब जाने क्या झाँकने आया मिरे घर आख़िर-ए-कार और जहाँ ख़त्म हुआ है मन-ओ-सल्वा का नुज़ूल काम आया है मिरा रिज़्क़-ए-हुनर आख़िर-ए-कार शाम तक एक भी चेहरा न रुका मेरे लिए बंद होने लगा बाज़ार-ए-नज़र आख़िर-ए-कार कुछ सियह-पोश चराग़ों का भला क्या मज़कूर अज़दहे खा गए महताब-नगर आख़िर-ए-कार