ख़ुनुक हवा में बड़ी शो'ला-ख़ेज़ ख़ुशबू है ख़याल-ए-यार चम्बेली की तेज़ ख़ुशबू है हवा के हाथ न लग जाए मौसमों से कहो कि एक फूल का सारा जहेज़ ख़ुशबू है चुरा गए हैं तिरी उँगलियों का लोच हुरूफ़ अजीब ख़त है अजब इत्र-बेज़ ख़ुशबू है पुरानी यादों से संददुक़चा भरा हुआ है सो ख़ूब इल्म है क्यों ज़ेर-ए-मेज़ ख़ुशबू है चटख़ रहा है वजूद और बिखर रहा है ख़याल शराब बीच कोई शीशा-रेज़ ख़ुशबू है