ख़िज़ाँ-दीदा गुलिस्ताँ का नज़ारा कर लिया मैं ने न पा कर फूल काँटों ही से दामन भर लिया मैं ने मुझी से उठ न पाया बार तब्लीग़-ए-मोहब्बत का शर-ओ-फ़ित्ना का हर इल्ज़ाम अपने सर लिया मैं ने दरून-ए-मय-कदा देखी ग़लत-बख़्शी जो साक़ी की तो अपने आँसूओं से अपना साग़र भर लिया मैं ने ख़ुलूस-ए-दिल से अब तन्क़ीद करना फ़र्ज़ ठहरा है क़लम कब है क़लम अब हाथ में नश्तर लिया मैं ने मुझे क्या ख़ौफ़ हस्ती की किसी भी ज़हर-नाकी का कि ज़ह्र-ए-हिज्र-ए-जानाँ तक गवारा कर लिया मैं ने मिरे फ़न ने जिला पाई है हर तन्क़ीद जाएज़ है हर इक तन्क़ीद-ए-जाएज़ को सर आँखों पर लिया मैं ने ख़ुदा के फ़ज़्ल से मैं मुतमइन हूँ और शाकिर भी बड़ी हिम्मत से हर मैदान को सर कर लिया मैं ने मुझे 'मग़्मूम' अब हो मुख़्लिसी इस मरने जीने से बहुत कुछ जी लिया मैं ने बहुत कुछ मर लिया मैं ने