ख़िज़ाँ जो आई बहारों ने साथ छोड़ दिया पड़ा जो वक़्त तो यारों ने साथ छोड़ दिया गिला करें भी तो ग़ैरों का किस तरह से करें हमारा जब कि हमारों ने साथ छोड़ दिया जिन्हों ने अपना बनाया था ज़िंदगी में कभी उन्हीं हसीन सहारों ने साथ छोड़ दिया तमाम रात सितारों से गुफ़्तुगू में कटी सहर हुई तो सितारों ने साथ छोड़ दिया मैं ख़ुद ही ग़र्क़-ए-तमन्ना हुआ हूँ ऐ 'माहिर' वो कह रहे हैं किनारों ने साथ छोड़ दिया