तंग-दस्ती का बुरा हो सब से याराने गए हाँ मगर अपने पराए आज पहचाने गए दोष है क़िस्मत का अपनी अब किसे इल्ज़ाम दें बन गए दुश्मन वही हम जिन को अपनाने गए सैकड़ों रंज-ओ-अलम दिल में बसा कर लाए हैं जब भी हम महफ़िल में उन की दिल को बहलाने गए तुझ पे भी इल्ज़ाम कुछ आया तो होगा बेवफ़ा तेरी महफ़िल से जो उठ कर तेरे दीवाने गए हो गया एहसास ख़ुद्दारी का 'माहिर' जब से हम ग़ैर के दर पर न अब तक हाथ फैलाने गए