ख़िज़ाँ मिले कि हमें मौसम-ए-बहार मिले यहाँ वो दिल ही नहीं है जिसे क़रार मिले तमाम उम्र इबादत की नज़्र कर डालूँ बस एक बार तबीअ'त पे इख़्तियार मिले हमीं को तर्क-ए-तलब रास आ गई वर्ना तिरे करम के इशारे तो बे-शुमार मिले सदा रहे हैं मुक़द्दर के इख़्तियार में हम कभी हमें भी मुक़द्दर पे इख़्तियार मिले तमाम लोग समझते थे तुम न आओगे तमाम लोग मगर महव-ए-इंतिज़ार मिले रहे किसी की निगाहों में ग़ैर ही 'इशरत' हम एक बार मिले या हज़ार बार मिले