कौन से घाट चढ़े किस की दुआ ले कोई ज़िंदगी प्यास नहीं है कि बुझा ले कोई जागता हूँ कि इस इफ़्लास-ज़दा बस्ती में किस को मालूम मिरे ख़्वाब चुरा ले कोई दश्त-ए-हालात में यादों से हम-आग़ोशी-ए-दिल जैसे इक ईद तिरे साथ मना ले कोई अपने गजरे मिरी साँसों में पिरो दे वर्ना फूल के साथ चमन भी न उड़ा ले कोई खुल गए क़ाफ़िला-ए-यास के परचम 'इशरत' हर गुज़रगाह-ए-तमन्ना को सजा ले कोई