खो गई चाँद की ख़ुशबू कैसे ढल गई ज़हर में कू कू कैसे जाम-दर-जाम बहारें उतरीं चश्म-ए-शब कर गई जादू कैसे उस के होंटों पे था मुस्कान का रंग उस की आँखों में थे आँसू कैसे तेरी आँखों के सहीफ़े सारे दफ़अ'तन बुझ गए ना-ज़ू कैसे दिल किसी तौर सँभलता ही नहीं इस पे पा जाऊँ मैं क़ाबू कैसे जिन में पिन्हाँ थीं बहारें 'साजिद' वो ख़िज़ाँ बन गए गेसू कैसे