खो के देखा था पा के देख लिया हर तरह दिल दिखा के देख लिया फिर खुले इब्तिदा-ए-इश्क़ के बाब उस ने फिर मुस्कुरा के देख लिया याद कुछ भी रहा न उस के सिवा हम ने उस को भुला के देख लिया ज़िंदगी ने ख़ुशी के धोके में रब्त ग़म से बढ़ा के देख लिया ऐसे बिछड़े कि फिर मिले न कभी ख़ूब दामन छुड़ा के देख लिया ख़्वाब मुबहम ख़याल बे-म'अनी रंज-ए-दूरी उठा के देख लिया कितने बीते दिनों का ग़म था 'सहर' आज जिस ने रुला के देख लिया