खोद कर बुनियाद के पत्थर लिए फिरते रहे अपने काँधों पर हम अपना घर लिए फिरते रहे तिश्नगी का अल्मिया किस से बयाँ करते वहाँ हम समुंदर में तही साग़र लिए फिरते रहे आज के बाज़ार में संग-ओ-ख़ज़फ़ की माँग है लाल-ओ-गौहर लाख सौदागर लिए फिरते रहे क्या हुई सुब्ह-ए-बनारस क्या हुई शाम-ए-अवध हम फ़क़त आँखों में वो मंज़र लिए फिरते रहे आज तक दुनिया में हम औरों के साए के लिए अपने सर पर धूप की चादर लिए फिरते रहे कौन देता है शहीदान-ए-वफ़ा का ख़ूँ-बहा अपने हाथों पर हम अपना सर लिए फिरते रहे काम कोई भी न आया जब पड़ा वक़्त-ए-ख़राब लब पे सब अल्फ़ाज़ के दफ़्तर लिए फिरते रहे प्यार का पाया है इस आलम में क्या प्यारा जवाब फूल हम हाथों में वो पत्थर लिए फिरते रहे खेलती थी मुस्कुराहट जिन के होंटों पर 'ज़ुहूर' आस्तीनों में वही ख़ंजर लिए फिरते रहे