खोवें हैं नींद मेरी मुसीबत बयानीयाँ तुम भी तो एक रात सुनो ये कहानियाँ क्या आग दे के तौर को की तर्क सर-कशी उस शो'ले की वही हैं शरारत की बानीयाँ सोहबत रखा किया वो सफिया-ओ-ज़लाल से दिल ही में ख़ूँ हुआ कीं मिरी नुक्ता-दानियाँ हम से तो कीने ही की अदाएँ चली गईं बे-लुत्फ़ियाँ यही यही ना-मेहरबानियाँ तलवार के तले ही गया अहद-ए-इम्बिसात मर मर के हम ने काटी हैं अपनी जवानियाँ गाली सिवाए मुझ से सुख़न मत किया करो अच्छी लगे हैं मुझ को तिरी बद-ज़बानियाँ ग़ैरों ही के सुख़न की तरफ़ गोश-ए-यार थे इस हर्फ़-ए-ना-शिनो ने हमारी न मानियां ये बे-क़रारियाँ न कभू इन नय-देखीयाँ जाँ-काहीयाँ हमारी बहुत सहल जानियाँ मारा मुझे भी सान के ग़ैरों में उन ने 'मीर' क्या ख़ाक में मिलाईं मिरी जाँ-फ़िशानीयाँ