खोया हुआ है आदमी हुस्न-ओ-जमाल में क्या क्या लताफ़तें हैं रुख़-ए-बे-मिसाल में उस के ख़याल ही में गुज़र जाए ज़िंदगी बेहतर है ये ख़याल भी मेरे ख़याल में करते हैं कितने लोग मोहब्बत ज़मीर से है ज़र्ब ला-जवाब किसी के सवाल में बिल्ली ने रस्ता काट के एलान कर दिया अब तक फँसे हैं लोग सितारों के जाल में लफ़्ज़ों के हेर-फेर से बाज़ी पलट गई हर शख़्स आ गया है सियासत की चाल में 'सरवत' गुज़र रहा है वही देख लीजिए जो कुछ हुआ था गुज़रे हुए माह-ओ-साल में