ख़ूब ही चलती हुई वो नर्गिस-ए-मस्ताना है आश्ना से आश्ना बेगाने से बेगाना है आते जाते हैं नए हर रोज़ मुर्ग़-ए-नामा-बर बंदा-पर्वर आप का घर भी कबूतर-ख़ाना है फ़ातिहा पढ़ने को आया था मगर वो शम्अ'-रू आज मेरी क़ब्र का जो फूल है परवाना है पा-ए-साक़ी पर गिराया जब गिराया है मुझे चाल से ख़ाली कहाँ ये लग़्ज़िश-ए-मस्ताना है मुझ को ले जा कर कहा नासेह ने उन के रू-ब-रू आप के सर की क़सम ये आप का दीवाना है 'दाग़' ये है कू-ए-क़ातिल मान नादाँ ज़िद न कर उठ यहाँ से आ इधर घर बैठ कुछ दीवाना है