ख़ूब ख़बर लेते हैं मेरी ख़ैर से ये अग़्यार बहुत दोस्त को बद-ज़न करने वाले अल्लह रक्खे यार बहुत ज़ीस्त का रस्ता यूँ तो नज़र आता ही है हमवार बहुत ज़ीस्त के सहरा से जब गुज़रे तो निकला दुश्वार बहुत हर-सू दार-ओ-गीर मची है मुजरिम कौन है मुंसिफ़ कौन दार पे अपनों का सर रख दें ऐसे याँ सरदार बहुत सब कुछ करना लेकिन लाज़िम इश्क़ से करना तुम परहेज़ चारागर की नसीहतों ने मुझे किया लाचार बहुत सामने वो आए भी लेकिन पलक झपकते गुज़र गए मैं ने दिल में बसा रखे थे अरमान-ए-दीदार बहुत मेरी ही क़िस्मत के तारे गर्दिश में हैं क्यों आख़िर मेरे मुक़द्दर ही में शायद तारे हैं दुम-दार बहुत नासेह ये कहता है तुझ को आता कोई हुनर नहीं गली गली में मय-ख़ानों का मेरा कारोबार बहुत नक़्श-ए-क़दम जो नाक़ा-ए-लैला का सहरा में ढूँड लिया वर्ना तो लैला का मिलना क़ैस को था दुश्वार बहुत सद-हा हम-सफ़रों ने छोड़ा इस का मुझ को क्या ग़म है मंज़िल को ले जाने वाले 'शाहिद' मुझ को चार बहुत