ख़ुद अपनी सोच की परछाइयाँ डराएँ मुझे ये डाइनें ये पिछल-पाइयाँ डराएँ मुझे ज़मीन गिरने लगी आसमान पर लोगो कि मेरी डोलती बीनाइयाँ डराएँ मुझे अब आईनों के मुक़ाबिल ठहर न पाऊँ मैं कि उन की कुछ नई सच्चाइयाँ डराएँ मुझे जो कल अचम्भा सा था दुश्मनों की यूरिश पर तो आज अपनी ही पसपाइयाँ डराएँ मुझे गुरेज़ करता हूँ ज़ामिन अना-परस्तों से कि उन के ज़ह्न की तन्हाइयाँ डराएँ मुझे