ख़ुद-ब-ख़ुद दीदा-ओ-दिल में जो समाया जाए हाए उस शख़्स को किस तरह भुलाया जाए एक इक ज़र्रे को आईना बनाया जाए जल्वा-ए-हुस्न-ए-नज़र उन को दिखाया जाए बात जब है कि न गुज़रे दिल-ए-नाज़ुक पे गिराँ शौक़ से हाल-ए-शब-ए-हिज्र सुनाया जाए माह-ओ-अंजुम हैं कहीं और कहीं लाला-ओ-गुल दामन-ए-शौक़ को किस किस से बचाया जाए कैसी पाबंदी-ए-ज़िंदाँ कि है फ़ितरत आज़ाद ख़ून-ए-दिल से चमन-ए-ताज़ा बनाया जाए शेवा-ए-ज़ब्त का ऐ दोस्त तक़ाज़ा है यही दिल का हर राज़ ख़ुद उन से भी छुपाया जाए उन की महफ़िल में अगर रस्म-ए-ज़बाँ-बंदी है क़िस्सा-ए-शौक़ निगाहों से सुनाया जाए साया-ए-बर्क़ में ऐ जोश-ए-मज़ाक़-ए-ता'मीर आशियाँ रोज़ गुलिस्ताँ में बनाया जाए होने पाए न कहीं ज़िंदगी बे-कैफ़ 'नज़ीर' एक हंगामा-ए-ख़ामोश मचाया जाए