मेरे दिल-ए-वहशी की बस इतनी हक़ीक़त है इक दर्द का आलम है दुनिया-ए-मोहब्बत है हमदर्द किसी का अब दुनिया में नहीं कोई बदला हुआ हर इक का अंदाज़-ए-तबीअत है रूदाद-ए-शहीदाँ है ईसार का आईना ईसार का आईना शहकार-ए-हक़ीक़त है हर ग़ुंचा-ए-नौरस्ता कहता है ये गुलचीं से फूलों पे सितम ढाना अंजाम से ग़फ़लत है गुलज़ार-ए-वतन का क्यों हर दम न ख़याल आए दिल के लिए काँटा सा ये वादी-ए-ग़ुर्बत है मुझ पर जो गुज़रती है औरों की बला जाने सहना है मुझे ख़ुद ही ये मेरी मुसीबत है आकर मिरी मिज़्गाँ पर जब अश्क चमकते हैं वो कहते हैं मोती हैं अल्लाह की क़ुदरत है नग़्मात-ए-'सआदत' में इक गुल के तअ'ल्लुक़ से कलियों की नज़ाकत है शबनम की लताफ़त है