ख़ुद को भूका ही रखा और कमाई रोटी तब कहीं बाप ने बच्चों को खिलाई रोटी उस की मेहनत के ही सदक़े में मिली है हम को उस ने जल जल के ही खेतों में उगाई रोटी एक मुद्दत में मिरे गाँव को लौटा जब मैं अपने हाथों से मिरी माँ ने खिलाई रोटी और माँगेगा भी क्या इस के सिवा बूढ़ा फ़क़ीर एक कम्बल हो अगर और दो ढाई रोटी हम ने ख़ूँ दे के बनाया है ज़मीं को ज़रख़ेज़ तब कहीं जा के तिरे हाथ में आई रोटी उस के चेहरे पे ख़ुशी देखने के लाएक़ थी उस ने जब पहली दफ़ा गोल बनाई रोटी मैं ने कल शब जो सबब रोने का पूछा उस से उस ने चंदा में इशारे से दिखाई रोटी