रूठ के मुझ से घर के द्वारे बैठी है गाल फुला कर प्यारे प्यारे बैठी है अपने कमरे में ख़ामोश खड़े हैं हम और तन्हाई बाल सँवारे बैठी है छूट रहा है उम्मीदों का दामन अब ना-उम्मीदी पाँव पसारे बैठी है सोचा था बाहर खाने पर जाएँगे पर वो मूँग की दाल बघारे बैठी है चुप बैठे हैं रेल की खिड़की से लग कर और उदासी साथ हमारे बैठी है बैठे हैं चुप-चाप अकेले हम इस पार इक दुनिया उस पार किनारे बैठी है