ख़ुद को भुला के हम उन्हें ढूँडें मगर कहाँ उन की नज़र नज़र है हमारी नज़र कहाँ जाएँ तिरी तलाश में शोरीदा-सर कहाँ रहते हैं अपने हाल से वो बा-ख़बर कहाँ आँचल की सरसराहटें नग़्मा-नवाज़ हैं साथ उन के जा रही है नसीम-ए-सहर कहाँ बरगश्ता आप क्या हैं ज़माना भी है ख़िलाफ़ अब हम गुज़ारें ज़िंदगी-ए-मुख़्तसर कहाँ मिस्ल-ए-ग़ुबार राह-ए-तलब उस्तुवार कर सीखा है उड़ती ख़ाक ने अज़्म-ए-सफ़र कहाँ उन मस्त-अँखड़ियों के तसव्वुर में खो गए ख़ुद अपने होश में हैं मिरे चारागर कहाँ पहली सी रस्म-ओ-राह 'शबाना' नहीं रही हम मिट गए मगर उन्हें इस की ख़बर कहाँ