ख़ुदा की देन से सामान-ए-ज़ीस्त क्या न मिला मगर यही कि मुझे ज़ीस्त का मज़ा न मिला नवा-ए-दिल को कोई पर्दा साज़गार नहीं चमन में नाला-ए-बुलबुल से तो गिला न मिला सुकून नाम है नक़्ल-ए-बला के वक़्फ़े का नशात-ए-ज़ीस्त का इस के सिवा पता न मिला ये हाल ता दम-ए-आख़िर नियाज़-ए-शौक़ रहा बहुत मिला जो मुझे नाला-ए-रसा न मिला मुराद दिल की न बर आई इस को क्या कहिए जहाँ में दिल ही मुझे हस्ब-ए-मुद्दआ न मिला किसी बहाने तो जाना है कु-ए-दिल-बर में तलाश-ए-दिल से ग़रज़ क्या मिला मिला न मिला हुआ यही कि हम एहसान ख़ुद उठा न सके नहीं कि क़ुल्ज़ुम-ए-हस्ती में नाख़ुदा न मिला ख़ुलूस-ए-इश्क़ से मिलता रहा ग़म-ए-पैहम हनूज़ मेरी वफ़ा का कोई सिला न मिला वो एक और यहाँ आश्ना-ए-दर्द हज़ार भला हुआ जो दिल-ए-दर्द-आश्ना न मिला खुला तो है अभी 'शाकिर' दर-ए-ख़ज़ाना-ए-ग़ैब मिले किसे कि यहाँ क़िस्मत-आज़मा न मिला