नज़रों में समाया है इक जल्वा-ए-जानाना अब दोनों बराबर हैं का'बा हो कि बुत-ख़ाना अंदाज़-ए-जुनूँ मेरा ऐसा है हकीमाना फ़र्ज़ानों में फ़रज़ाना दीवानों में दीवाना वाइज़ ने नहीं खोला इक राज़-ए-हक़ीक़त भी बस बातें ही बातें हैं अफ़्साना ही अफ़्साना ये सूरत-ए-नाज़ अच्छी ये रस्म-ए-नियाज़ अच्छी हुस्न अपनों से बेगाना इश्क़ आप से बेगाना वो रिंद-ए-अज़ल हूँ मैं साक़ी की निगाहों में सद जान-ए-अदब मेरी इक लग़्ज़िश-ए-मस्ताना रहती है मुदाम उल्टी रिंदान-ए-क़दह-कश से अफ़्लाक की गर्दिश हो या गर्दिश-ए-पैमाना वाइज़ को शिकायत क्यों वाइज़ की शिकायत क्या मैं होश से बेगाना ये अक़्ल से बेगाना हंगामा हवस का हो या इश्क़ को शोरिश हो इक दिल ही पे मब्नी है कौनैन का अफ़्साना ये सोज़ मिरे दिल का कब उस को मयस्सर था जलती हुई क्या रहती ख़ाकिस्तर-ए-परवाना था होश के दम तक ही हर शिकवा-ए-बे-मेहरी अब तुम से कहेगा क्या दिल आप से बेगाना पड़ती है नज़र मुझ पर अब शैख़-ए-हरम की भी तुझ से वो इरादत है ऐ मुर्शिद-ए-मय-ख़ाना पिंदार-शिकन मस्ती साक़ी से मिली वर्ना मय-ख़ाना हिला देती इक जुरअत-ए-रिंदाना इस राह-ए-मोहब्बत में कुछ पेश नहीं चलती 'शाकिर' वो कहाँ अपनी अब हिम्मत-ए-मर्दाना